किस ओर तू चला है बावरे?
किस ओर तू उड़ा है बावरे?
हर दिशां में तेरी ही छवि है
और हर छवी में वोह हर शक़्स है ,जिसे तलाश हर वक़्त है
पुकारती है मंजिले जिसे बेहध है
किस ओर तू चला है बावरे?
किस ओर तू उड़ा है बावरे?
कतरा कतरा जीता क्यूं है?
फिर कतरा कतरा मरता क्यूं है?
बिखरे सवालो सा फिर क्यूं है?
उलझे जवाबों सा फिर क्यूं है?
जब खुद में है अस्तितिव तेरा
फिर हर जगह भटकता तू क्यू है?
किस ओर तू चला है बावरे ?
किस ओर तू उड़ा है बावरे?
“सुरवइवर पोईतिस”
एशिका