कुछ है
जो दबी है हवाओ में कही
जो सर उठाओ तो देख लेना
वही खूँटे पे तंगी लमहों की चादर मिलेगी
कुछ रंगो में एहसासों की नशीली परछाईं मिलेगी
मदहोशी में सनी आख़री साँसे लेता, वो बुदबुदाता बल्ब मिलेगा
अपनी ही परत उतारती, वो आँधियो में हिम्मत रखती दीवार मिलेगी
उस छत से टपकती बूँदों में छिपें फ़रियाद मिलेंगे
अपनी ख़ुश्क बदन को सम्भालता , वो टूटता अलमिराह का पल्ला मिलेगा
मेज़ पर रखी ash tray में सूखे ख़ाक के पत्ते मिलेंगे
पलंग की खोकली होती टांगो में दीमक लगे ढेर होते घर मिलेंगे
उस खिड़की की पकड़ में खनकती काँच की चूड़ियाँ मिलेंगी
बिस्तर के माथे पर कई रंगीन चिपकी एक टक देखती बिंदिया मिलेंगी
नासूर होती दर्द के सैलाब में डूबी वो वरांडा में डालिए के पौधे मिलेंगे
हो सके तो सहेज लेना इन्हें
समय की मार से निराश
सब नज़रें टिकाए अधखुली आँखो से
बेइन्तहा रोशनी के इंतेज़ार में हैं
कब धुँध छटेगी? कब उजाला होगा?
ख़ुद को समेट पाओ तो आ जाना
ख़ुद से लड़ पाओ तो आ जाना
ख़ुद को मिटा पाओ तो आ जाना l
Picture by Kelly Sikkema (Unsplash)